कविताएँ

Monday, June 06, 2005

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माँ
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इस एक शब्द 'माँ' में है मंत्र–शक्ति भारी
यह मंत्र–शक्ति सबको फलदायी होती है,
आशीष–सुधा माँ देती अपनो बच्चों को
वह स्वयं झेलती दुःख, विषपायी होती है।
***
माँ से कोमल है शब्द–कोश में शब्द नहीं
माँ की ममता से बड़ी न कोई ममता है,
उपमान और उपमाएँ सबकी मिल सकतीं
लेकिन दुनिया में माँ की कहीं न समता है।
***
यह छोटा–सा 'माँ' शब्द, सिन्धु क्षमताओं का
तप–त्याग–स्नेह से रहता सदा लबालब है,
खारा सागर, माँ की समता क्या कर पाए
माँ की महानता से महान कोई कब है।
***
हम लोग जिसे ममता कहकर पुकारते हैं
बौनी है वह भी माँ की ममता के सम्मुख,
हम लोग जिसे क्षमता कहकर पुकारते हैं
बौनी है वह भी माँ की ममता के सम्मुख।
***

माँ की महानता से, महानता बड़ी नहीं
माँ के तप से, होता कोई तप बड़ा नहीं,
साकार त्याग भी माँ के आगे बौना है
माँ के सम्मुख हो सकता कोई खड़ा नहीं।
***

हैं त्याग–आग अनुराग मातृ–उर में पलते
वर्षा–निदाघ आँखों में पलते आए हैं,
भावना और कर्त्तव्य रहे ताने–बाने
चरमोत्कर्ष ममता – क्षमता ने पाए हैं।
***

बेटे के तन का रोयाँ भी दुखता देखे
माता आकुल–व्याकुल हो जाया करती है,
जब पुत्र–दान की माँग धरा–माता करती
इस कठिन कसौटी पर माँ खरी उतरती है।
***

वह धातु अलग, जिससे माँ निर्मित होती है
उसको कैसा भी ताप नहीं पिघला सकता,
हल्के से हल्का ताप पुत्र – पुत्री को हो
माँ के मन के हिम को वह ताप गला सकता।
***

दुनिया में जितने भी सागर, सब उथले हैं
माता का उर प्रत्येक सिन्धु से गहरा है,
कोई पर्वत, माँ के मन को क्या छू पाए
माँ के सम्मुख कोई उपमान न ठहरा है।
***

इतनी महानता भारत की माताओं में
अवतारों को भी अपनी गोद खिलाती हैं,
हो राम – कृष्ण गौतम या कोई महावीर
माताएँ हैं, जो उनको पाठ पढ़ाती हैं।
***

कोई जीजा माँ किसी शिवा को शेर बना
जब समर–भूमि में सह–आशीष पठाती है,
तो बड़े – बड़े योद्धा भी भाग खड़े होते
अरि के खेमों में काई–सी फट जाती है।
***

कोई जगरानी किसी चन्द्रशेखर को जब
निज दूध पिला जीवन के पाठ पढ़ाती है,
वह दूध खून का फव्वारा बन जाता है
वह मौत, मौत को भी झकझोर रुलाती है।
***

कोई विद्या माँ, भगत सिंह से बेटे को
जब घोल–घोल घुट्टी में क्रान्ति पिलाती है,
तो उसका शैशव बन्दूकें बोने लगता
बरजोर जवानी फाँसी को ललचाती है।
***

जब प्रभावती कोई सुभाष से बेटे को
भारत–माता की व्यथा–कथा बतलाती है,
हर साँस और हर धड़कन उस विद्रोही की
धरती की आजादी की बलि चढ़ जाती है।
***

कोई चाफेकर – माता तीन – तीन बेटे
भारत माता के ऊपर न्योछावर करती,
कहती, चौथा होता तो वह भी दे देती
आँसू न एक गिरता, वह आह नहीं भरती।
***

तप और त्याग साकार देखना यदि अभीष्ट
तो देखे कोई भारत की माताओं को,
कलियों में किसलय में भी लपटें होती हैं
तो देखे कोई भारत की ललनाओं को।
***
कर्त्तव्य हमारा, हम माताओं को पूजें
आशीष कवच पाकर उनका, निर्भय विचरें,
हम लाज रखें उसकी, जो हमने दूध पिया
माँ और बड़ी माँ का हम ऊँचा नाम करें।
***

माता माता तो है ही, गुरु भी होती है
माता ही पहले–पहले सबक सिखाती है,
माँ घुट्टी में ही जीवन घोल पिला देती
माँ ही हमको जीवन की राह दिखाती है।
***

हम जननी की, भारत–जननी की जय बोलें
निज जीवन देकर उनके कर्ज चुकाएँ हम
जो सीख मिली है, उसका पालन करने को
निज शीश कटा दें, उनको नहीं झुकाएँ हम।
***
-श्रीकृष्ण सरल
ggggggggggg पीछे gg

2 Comments:

At 6:25 PM, Blogger Vandana Ramasingh said...

श्री कृष्ण सरल जी की बेहतरीन रचनाएं पढवाने के लिए आभार

 
At 8:57 AM, Blogger विभूति" said...

बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......

 

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